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जैन शास्त्रों की असंगतबातें ! न हो और साधु-जीवन का तथाकथित विधान भी कर्म-बन्धन से विमुक्त बना रहे।
. ज्वार-भाटे सम्बन्धी कपोल-कल्पना इस लेख में जैन शास्त्रों में वर्णित ज्वार-भाटे की कल्पना के विषय में लिखना है।
ज्वार-भाटे के विषय में भगवान महावीर प्रभु से श्री गौतम स्वामी ने पूछा कि अहो भगवन् ! लवण समुद्र का पानी अष्टमी, चतुर्दशी, अमावश्या और पूर्णिमा को क्यों बढ़ता है और क्यों कम होता है ? भगवान ने उत्तर दिया कि हे गौतम ! जम्बूदीप के चारों तरफ लवण समुद्र में ६५-६५ हजार योजन जावें तब वलयमुख, केतुमुख, युव, और ईश्वर नामक कुम्भ के आकार के ४ पाताल कलश चारों दिशाओं में हैं। प्रत्येक पाताल कलश एक लाख योजन की ऊँचाई वाला है जो जल में डूबा हुआ है। मूल में दस हजार योजन चौड़ा, मध्य में एक लाख योजन चौड़ा और ऊपर दस हजार योजन चौड़ा है। इनकी ठीकरी सर्बत्र एक हजार योजन मोटाई की है। इन पाताल कलशों के तीन तीन भाग करने पर एक एक भाग ३३३३३३ का होता है। नीचे के भाग में वायु, बीच के भाग में वायु और जल एक साथ
और उपर के भाग में निकेवल जल है। चारों दिशाओं के इन चार पाताल कलशों के अलावा इन के बीच में 8-8 पंक्तियाँ छोटे पाताल कलशों की है। प्रत्येक बड़े पाताल कलश के पास
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