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________________ १४४ जैन शास्त्रों की असंगत बातें ! एकान्त पाप की गठड़ी किस लिये सिर पर लं जिसके फल स्वरूप मुझे निकेवल दुःखों के गर्त में पड़ना पड़े। जैनी लोग धर्म और पुण्यकी व्याख्या इस प्रकार करते हैं कि जिस ( सम्बर निर्जरा की ) क्रिया के करने से निकेवल मोक्ष-प्राप्ति हो, उसे धर्म कहते हैं और जिस कार्य के करने में शुभ कर्मों का बन्ध हो वह पुण्य है। शुभ कर्मों के बन्ध होने का परिणाम यह होता है कि नाना प्रकार के ऐहिक सुखों की प्राप्ति और मोक्ष-प्राप्ति करने के साधनों की सुगमता और शुभ अवसर प्राप्त होता है। ___ ऊपर कहे हुए सार्वजनिक लाभ के परोपकारी कार्यों को करने में धर्म न मान कर यदि पुण्य ( शुभ कर्मों का बन्ध ) होना मान लिया जाय और साधु ऐसे कर्मों को स्वयं अपने तन से न करें तो किसी हद तक माना भी जा सकता हैं । कारण कर्म-बन्ध होने के कार्यों को करने का साधु के लिये विधान नहीं है, चाहे वे कर्म शुभ हों चाहे अशुभ। साधु ने तो कर्मों को नष्ट करने के लिये ही संयम व्रत आदरे हैं। मगर सदगृहस्थों के लिये तो शुभ कर्मों के बन्ध होने का कथन समाज-हित के लिये श्रेयस्कर और लाभप्रद ही है। अतः सार्वजनिक लाभ के परोपकारी कामों के करने में एकान्त पाप मानने वाले सज्जनों से मेरा विनम्र विनय है कि ऐसे कामों के करने में आप पुण्य का होना बतलाने लग ( जैसा कि अन्य सब जैनी बतला रहे हैं ) ताकि सामाजिक हितों का भी अनिष्ट Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.003650
Book TitleJain Shastro ki Asangat Bate
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaccharaj Singhi
PublisherBuddhivadi Prakashan
Publication Year1945
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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