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जैन शास्त्रों की भसंगत बातें ! की बातें सामने रखी हैं, तब से जो सम्जन गणना करना जानते हैं, उनके हृदय में तो पूर्ण विश्वास होगया है कि वर्तमान शास्त्र न तो सर्वज्ञों के बचन ही हैं और न अक्षर अक्षर सत्य ही। कई विद्वान सज्जनों ने तो इन विषयों को अच्छी तरह समझ कर मेरे समक्ष यह भी स्वीकार कर लिया है कि वास्तव में वर्तमान शास्त्र सर्वज्ञ-प्रणीत और अक्षर-अक्षर सत्य कदापि नहीं हो सकते।
जिन शास्त्रों से यह सिद्धान्त निकल रहे हों कि भूख प्यास से मरते हुए को अन्न पानी की सहायता से बचाना, शिक्षा-प्रचार करना, माता-पिता-पति आदि की सेवा शुश्रूषा करना, जलते हुए मकान के बन्द द्वारों को खोल कर अन्दर के मनुष्यों को बचा देना, बाढ़ भूकम्प आदि दुर्घटनाओं से पीड़ित बिपत्ति प्रस्त लोगों की सहायता करना आदि सार्वजनिक लाभ के परोपकारी कार्यों को निस्वार्थ भाव से करने पर भी सामाजिक व्यक्ति को एकान्त पाप और अधर्म होता है, तो ऐसे शास्त्रों को अक्षर-अक्षर सत्य मान कर अमल में लाने का परिणाम मानव समाज के लिये अत्यन्त घातक हैं। यह तो मानी हुई बात है कि मानव समाज परस्पर के सहयोग पर जिन्दा है-इसलिये सब का सबके प्रति सहयोग रहनाआवश्यक कर्तव्य है। मेरे लेखों में बताई हुई शास्त्रों की असत्य, अस्वाभाविक और असम्भव बातों द्वारा जब कि यह स्पष्ट प्रमाणित हो रहा है कि न तो यह शास्त्र सर्वज्ञ-प्रणीत हैं और
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