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________________ जैन शास्त्रों की असंगत बातें ! १३६ सकता • केवलज्ञानियों ने दिव्य दृष्टि से जो बात देखी है, उसके साथ साधारण मति श्रुति अज्ञान के धारक व्यक्तियों के परिवर्तन-शील मत की तुलना करना अयुक्त है । ज्ञानियों के वचनों में शङ्का करना सम्यकत्व का दूषण है । मतिश्रुति अज्ञान के धारक वैज्ञानिक लोग ज्यों ज्यों नई चीज को देखते हैं, प्रकाश करते हैं, उनकी खोज केवलज्ञानी के ज्ञान की बराबरी कैसे करेगी ?” ऐसा कहकर सम्पादक महोदय ने Sir James Jeans के Royal Institute में हाल ही में दिये हुये एक भाषण का कुछ उद्धरण देकर एक यन्त्र द्वारा ग्रहों के ज्योति विकीर्ण से वैज्ञानिकों की पूर्व निश्चित धारणा से अभी की धारणा बदले जाने का हवाला देते हुए विज्ञान के कथन को अविश्वास योग्य ठहराने का प्रयास किया है। विवरणपत्रिका के गत जुलाई के अड्ड में भी उन्होंने विज्ञान पर से लोगों की श्रद्धा हटाने की चेष्टा की थी और इस लेख में भी विज्ञान को मति श्रुति अज्ञान के भेदों में लेते हुये वैज्ञानिक लोगों को अज्ञान के धारक बताकर उनके कथन को अविश्वास - योग्य बताने का प्रयास किया गया है । यदि मेरे लेखों को दृष्टिगत करके विज्ञान को अविश्वास - योग्य ठहराने का प्रयास क्रिया जा रहा हो, तब तो मैं कहूंगा कि कुम्हार कुम्हारी वाले मसले की तरह गधे के कान ऐंठने का सा कदम नजर आ रहा है । विज्ञान का यदि कोई अपराध है तो केवल इतना ही है कि वह सर्वज्ञता का मिथ्या दावा पेश नहीं करता । इन्सान को बुद्धि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003650
Book TitleJain Shastro ki Asangat Bate
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaccharaj Singhi
PublisherBuddhivadi Prakashan
Publication Year1945
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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