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जैन शास्त्रों की असंगत वातें !
१३७ नन्दीसूत्र में ८ वर्ग और समवायांग में ७ वर्ग बताये हैं। नन्दी में ८ उदेशा और समवायांग १० उदेशा। नन्दी में ८ समउदेशा और समवायांग में १० समउदेशा बताये है।
(६) अनुतरोववाई सूत्र के बाबत नन्दी सूत्र में बिस्तार-क्रम के ६ बोल बताये हैं और समवायाँग में ७ बोल । संग्रहणी का होना अधिक बताया है नन्दी सूत्र में अध्ययन के विषय में कुछ नहीं कहा है जहां समवायांग में १० अध्ययन बताये हैं। नन्दी सूत्र में ३ उदेशा और समवायांग में १० उदेशा। नन्दी में ३ समउदेशा और समवायांग में १० समउदेशा बताये हैं।
(१०) प्रश्न ब्याकरण सूत्र के वाबत नन्दी सूत्र में विस्तारक्रम के ६ बोल बताये हैं जब कि समवायांग में ७ बोल हैं। संग्रहणी का होना अधिक बताया है। नन्दी सूत्र में अध्ययन ४५ बताये हैं जब कि समवायांग सूत्र में अध्ययन के बारे में कुछ नहीं कहा है। ... (११) बिपाक सूत्र के बाबत नन्दी में श्रु तस्कन्ध बताये हैं, जब की समवायांग में कुछ नहीं कहा है। समवायांग सूत्र में एक स्थान में २० अध्ययन बताये हैं और दूसरे स्थान में ५५ व समवायांग में ११० अध्ययन बताये हैं।
(१२ ) दृष्टिवाद अङ्गसूत्र के बाबत नन्दी और समवायांग के बताने में बिरोध नहीं हैं। सब प्रकार के भावों का होना कहा गया है।
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