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________________ १३६ जैन शास्त्रों की असंगत बातें ! पद-संख्या बताई है। भगवती के लिये नन्दी सूत्र में २८८००० को पद-संख्या दो गुणा क्रम के अनुसार ठीक है, मगर समवायांग में ८४००० किस कारण से बताई है, यह पता नहीं । २८८००० और ८४००० में बहुत बड़ा अन्तर है। (६) ज्ञाताधमकथांग सूत्र के वाबत नन्दी सूत्र में ३३ करोड़ कथा का होना बताया है और समवायांग सूत्र में ३३ करोड़ आख्याइका होना बताया है जब कि इस स्थान पर दोनों ही शब्द अपना अपना अर्थ रूढ़ शास्त्रों के अनुसार रखते हैं। यह साढ़े तीन करोड़ की गणना भी सर्वथा अयुक्त है। कारण, सूत्र में कहा है कि धर्म-कथा के १० वर्ग हैं और एक वर्ग की पाँच पाँच सौ आख्याइका हैं, एक एक आख्याइका में पाँच पाँच सौ उपाख्याइका हैं, एक एक उपाख्याइका में पाँच पाँच सौ :आख्याइका-उपाख्याइका हैं। इस प्रकार गुणा करने से यह संख्या ३३ करोड़ से बहुत अधिक होकर यह गणना अयुक्त ठहरती है। नन्दीसूत्र में रचनाक्रम के १६ उदेशा और. सामवायांग में २६ उदेशा तथा नन्दी सूत्र में १६ समउदेशा और समवायांग में २६ समउदेशा बताये हैं। (७) उपासक दशांग सूत्र के बाबत नन्दी और समवायांग के बताने में किसी प्रकार का विरोध नहीं है। (८) अन्तगढ़ दशांग सूत्र में अध्ययन के विषय में कुछ नहीं कहा, जब कि समवायांग सूत्र में १० अध्ययन बताये हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003650
Book TitleJain Shastro ki Asangat Bate
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaccharaj Singhi
PublisherBuddhivadi Prakashan
Publication Year1945
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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