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जैन शास्त्रों वी असंगत बातें ! १३५ बताने में जो परस्पर भिन्नता है, वह इस प्रकार है
(१) आचारङ्ग सूत्र के बाबत नन्दीसूत्र में विस्तार-क्रम के सात बोल बताये हैं, परन्तु समवायाङ्ग में केवल ६ बोल बताये हैं। संख्याता संग्रहणी नहीं बताया।
(२) सूएगडाङ्ग सूत्र के बाबत नन्दी सूत्र में विस्तारक्रम में केवल ५ बोल बयाये हैं और सामवायाङ्ग में ६ बोल। संख्याता बेढ़ा का होना अधिक बतलाया है
(३) ठाणाङ्ग सूत्र के बाबत नन्दी में विस्तारक्रम के ७ बोल बताये हैं और सामवायाङ्ग सूत्र में ६ बोल। नियुक्ति का होना नहीं बतलाया।
(४) समवायाङ्ग सूत्र के बाबत नन्दी में संख्याता संग्रहणी का होना नहीं बताया, जो समवायाङ्ग में बताया है और सामवायाङ्ग में संख्याता नियुक्ति का होना नहीं बताया, जो नन्दी में बताया है।
(५) भगवती सूत्र के बाबत नन्दीसूत्र में रचनाक्रम में २८८००० पद संख्या बताई है जिसको समवायांग सूत्र में केवल ८४००० पद संखया बताई है। अगसूत्रों के रचनाक्रम में पहिले आचारंग सूत्र की पद संख्या से दो गुणी बताई है, जैसे आचारंग की १८००० सूयगड़ांग की ३६०००, ठाणांग की ७२०००, सामवायांग की १४४०००, भगवती की २८८०००, और इसी तरह दो गुणे करते हुए बाकी के सब अङ्गसूत्रों की
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