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जैन शास्त्रों की असंगत बातें !
ऊपर लिखे बत्तीस सूत्रों में जो ११ अङ्ग सूत्र बताये गये हैं, वे १२ थे परन्तु दृष्टिवाद नाम का बारहवां अङ्गसूत्र लोप हो गया, बाकी के ११ अङ्गसूत्र यहां भरत क्षेत्र में माने जा रहे हैं । इन बारह अङ्गसूत्रों के विषय में यह लिखा है कि महाविदेह क्षेत्र में जहाँ कि अरिहन्त भगवन्त बिराज रहे हैं, वहां इन ही नामों के बारह अङ्गसूत्र हैं, जो शास्वत हैं यानी अनादिकाल से हैं : और अनन्त काल
तक रहेंगे ।
समय
१३४
भरत क्षेत्र
हैं, वे इन ही
में यहां पर जो ११ अङ्गसूत्र इस के अंश मात्र हैं और शास्वत नहीं हैं। महाविदेह क्षेत्र के शास्वत द्वादशांगी के रचनाक्रम और विस्तारक्रम के विषय में यहां के समवायांग सूत्र और नन्दी मूत्र दोनों में अलग अलग वर्णन किया हुआ है, जिस में परस्पर भिन्नता है । शास्वत द्वादशांगी के विषय में एक सूत्र में कुछ ही लिखा हुआ है और दूसरे में कुछ ही, यह खास बिचारने की बात है । दोनों सूत्रों के वर्णन में जब परस्पर भिन्नता है तो कौन से सूत्र का वर्णन सच्चा माना जाय और कौन से का मिथ्या ? विस्तार क्रम को सात प्रकार के बोलों से बताया है, जो इस प्रकार है - १ परितावाचना २ अनुयोगद्वार ३ बेड़ा ४ श्लोक ५ नियुक्ति ६ प्रतिकृति ७ संग्रहणी । रचनाक्रम को ६ प्रकार के बोलों से बताया है, जो इस प्रकार हैं - १ श्रुतस्कन्ध २ अध्ययन ३ वर्ग ४ उदेशा ५ समउदेशा ६ पद संख्या | निम्नलिखित शास्वत अङ्गसूत्रों के विषय में सामवाया और नन्दी दोनों सूत्रों के
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