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________________ __ जैन शास्त्रों की असंगत बातें ! १२६ तक न होना, इस पर भी उनको अक्षर अक्षर सत्य समझना जब कि प्रत्यक्ष में असत्य प्रमाणित होनेवाली बातें इन शास्त्रों में मौजूद हैं, तो इसको सिवाय कदाग्रह के और क्या कहा जा सकता हैं। जिस जगह किसी सूत्र का नाम लेकर उसकी महानता और बड़प्पन दर्शाया गया है, उसी जगह उसका लोप होना या विच्छेद जामा भी कह दिया गया है। यह एक आश्चर्य की बात है। ताड़-पत्रों पर हस्त-लिखित अन्य पुस्तक अनेक स्थानों में दो हजार वर्ष से पहिले की अब भी देखने में आ रही हैं और भगवान महावीर स्वामो के श्री धर्मदास गणि नामक एक शिष्य, जो गृहस्थ अवस्था में विजयपुर के विजयसेन नामक राजा थे और भगवान के स्वहस्त से दीक्षा प्राप्त की थी उनकी उपदेशमाला नामकी एक हस्त-लिखित प्रति पाटण के प्राचीन पुस्तक भण्डार में सुरक्षित पड़ी है, जिसका हवाला श्री जैन ग्रन्थावली में है। ऐसी अवस्था में जब कि लेखन-कला प्रचलित थी तो दृष्टिवाद अङ्गसूत्र लोप हो गया, चौदह यूर्व लोप हो गये, कई सूत्र जिनके पठन मात्र से देवता प्रकट होकर सेवा में हाजिर हो जाते थे, वे लोप हो गये-आदि कथन में कितनी सचाई है, यह विचारने का विषय है। इतने बड़े उच्च कोटि के उपयोगी ज्ञान और विद्याओं के भण्डार आगमों को लिपिवद्ध न करके कतई लोप होने देना कितनी बड़ी अकर्मण्यता है जब कि लेखन-कला प्रचलित थी। एक के पश्चात् दूसरा क्रमानुसार जैन सूत्रों के ८४ नाम प्रसिद्ध हैं जिनमें बहुत से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003650
Book TitleJain Shastro ki Asangat Bate
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaccharaj Singhi
PublisherBuddhivadi Prakashan
Publication Year1945
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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