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जैन शास्त्रों की असंगत बातें !
इस समय उपलब्ध नहीं हैं - लोप हो गये बताये जाते हैं ।
जैन - श्वेताम्बर मान्यता की इस समय तीन मुख्य सम्प्रदाय हैं। सम्वेगी या मूर्तिपूजक, बाइस टोले या स्थानकवासी और तेरापन्थी । सूत्रों के मानने के विषय में इनके विचार परस्पर भिन्न हैं । सम्वेगी या मूर्तिपूजक भगवान महावीर के पाट से अपने आपको पाट दर पाट अनुक्रम से चले आते हुये बतला रहे हैं और ८४ आगमों को मानते हैं परन्तु इनका यह कथन है कि ८४ में से इस समय अनुक्रमसे ४५ ही आगम उपलब्ध है, बाकीमें से अनेक आगम लोप हो गये । स्थानक वासी और तेरापंथ के विषय में जिनाज्ञा-प्रदीप नामक ग्रन्थ का ऐतिहासिक कथन यह है कि विक्रम सम्वत् १.३१ के लगभग अहमदाबाद में लुका का नाम का एक व्यक्ति जैन धर्म की पुस्तकों के लिखाने का ब्यबसाय किया करता था | श्री रत्नशेखर सूरि नामक तपागच्छ के आचार्य ने लुक्का से भगवती सूत्र की एक प्रति लिखवाई | श्री लुक्का ने भगवती सूत्र में, जङ्घाचारण विद्याचरण मुनि, जो लब्धि द्वारा शास्वत - अशास्वत जिन मन्दिर वन्दन करने गये थे, उनके विषय के ७ पृष्ठ नहीं लिखने की गलती कर दी । इस पर आचार्य महाराज ने भगवती सूत्र की वह प्रति लेने से इन्कार किया । आचार्य महाराज के इन्कार कर देने पर श्रीसङ्घने लुङ्का को लिखवाई के रुपये नहीं दिये । इसी बात को लेकर परस्पर बहुत विवाद बढ़ गया और लुङ्का को देकर निकाल दिया । लुङ्का ने इस अपमान का
उपाश्रय से धक्का
बदला
लेने की
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