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________________ १२८ जैन शास्त्रों की असंगत बातें ! - नामसे इस समय भी प्रसिद्ध हैं । ६८० वर्ष पर्यन्त केवल याददास्त के बल पर इतनी बड़ी श्लोक संख्या का पाट दर पाट लगातार हरफ -ब- हरफ याद रहना युक्ति-सगत नहीं समझा जा सकता । महावीर - निर्वाण के लगभग १६० वर्ष पश्चात् भगवान के पटधर शिष्य श्री भद्रबाहु स्वामी ( श्रुत केवली ) के समय में १२ वर्ष का महाभयङ्कर दुष्काल पड़ा जिसकी भयंकरता के परिणाम स्वरूप हजारों साधु पथ भ्रष्ट हो गये । भगवान भाषित दृष्टिवाद नाम का बारहवां अङ्ग-सूत्र, जिस में चौदह पूर्व और अनेक अपूर्व विद्याओं का समावेश था, लोप हो गया। ऐसी विकट अवस्था में इतने लम्बे अरसे तक अक्षर-ब- अक्षर इस तरह् स्मरण रखा जाना असम्भव के लगभग है । श्री देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमणने जो सूत्र लिखवाये थे, उनकी असल original प्रतियों का भी आज कहीं पता तक नहीं है । श्री जैन श्वेताम्बर कानस, बम्बई ने भारतवर्ष के प्रायः नामी नामी सब प्राचीन पुस्तक भण्डारों का अवलोकन किया, परन्तु यह प्रतियां कहीं भी नहीं मिलीं। इसी संस्था ने श्री जैन ग्रन्थावली नामक एक पुस्तक प्रकाशित की हैं, जिसमें प्रायः प्राचीन पुस्तक भण्डारों मैं सुरक्षित रखी हुई पुस्तकों तथा जैन आगमों की फेहरिस्त दी है । और यह भी लिखा है कि विक्रम सम्वत् १००० से पहिले का लिखा हुआ कोई भी जैन आगम प्राप्त नहीं हुआ है। शास्त्रों का भगवान के ६८० वर्ष पश्चात् केवल याददास्त के आधार पर लिखा जाना और लिखी हुई उन असल प्रतियों का कहीं पता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003650
Book TitleJain Shastro ki Asangat Bate
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaccharaj Singhi
PublisherBuddhivadi Prakashan
Publication Year1945
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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