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जैन द्यास्त्रों की असंगत बातें !
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अलावा अन्य आचार्यों व मुनियों द्वारा जो रचे गये, वे जैन ग्रन्थ या जैन शास्त्रों के नाम में समाविष्ट किये जा सकते हैं । गत लेखों में जैन सूत्रों की असत्य, अस्वाभाविक और असम्भव प्रतीत होने वाली बातों के विषय में मैंने लिखा था परन्तु प्रस्तुत लेख में मुझे यह बतलाना है कि एक ही बात के विषय में एक सूत्र में कुछ लिखा हुआ है, तो दूसरे में कुछ ही। यहां तक कि एक सूत्र में जो लिखा हुआ हैं. दूसरे में कहीं कहीं ठीक उसके विपरीत और बिरुद्ध तक लिखा हुआ है। जिन शास्त्रों को सर्वज्ञ-वचन मान कर अक्षर अक्षर सत्य कहनेका साहस किया जा रहा है, उनकी रचना में यदि इस प्रकार बचन-विरोध मिले तो कम से कम अक्षर अक्षर सत्य कहने का हठ तो नहीं होना चाहिये। जैन सूत्रों के विषय में जो इतिहास प्राप्त है, उससे भी यह स्पष्ट जाहिर होता है कि वर्तमान समय में जो सूत्र माने जा रहे हैं उन्हें अक्षर अक्षर सत्य मानना किसी तरह से भी युक्तिसङ्गत नहीं हो सकता। भगवान महावीर भाषित सूत्र उनके निर्वाण काल से ६८० वष पर्यन्त अक्षर-ब-अक्षर उनके शिष्यों की स्मरण-शक्ति और याददास्त पर अवलम्बित रहे, पुस्तकों में नहीं लिखे गये थे। इसके पश्चात् श्री देवद्धिगणि क्षमाश्रमण मे विक्रम सम्वत् ५३३ के लगभग उनको पुस्तकों में लिखवाये जो मथुरा और बल्लभीपुर में १८० से १६३ तक १४ वर्ष पर्यन्त लिखे गये थे। मथुरा में जो सूत्र लिखे गये, वे माथुरी वाचना के नाम से और बल्लभीपुर में लिखे गये, वे बल्लभी वाचना के
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