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________________ १२६ जैन शास्त्रों की असंगत बातें ! वाली बातों की रचना किस उद्देश्य से की। यह पहेली अभी तक समझ में नहीं आ रही है । दान, दया, अनुकम्पा पुण्य, धर्म आदि आवश्यक मानव-कर्तव्यों की ब्याख्या करने में तो भाषा और भावों को व्यक्त करने की त्रुटियों से आज ऐसी अवस्था उत्पन्न हो गई हैं कि एक ही शास्त्रों को माननेवाले हमारे तीनों श्वेताम्बर जैन सम्प्रदाय इन विषयों पर परस्पर लड़ रहे हैं परन्तु असत्य अस्वाभाविक और असम्भव प्रतीत होनेवाली बातों के लिये सब का एक मत और एक-सा फरमान है। अतः सब सम्प्रदाय के पथ-प्रदर्शकों से मेरा विनम्र अनुरोध है कि जिस प्रकार इन असत्य, आस्वाभाविक ओर असम्भव प्रतीत होनेवाली बातों के विषय में आप एक मत हैं उसी प्रकार दान, दया, पुन्य, धर्म आदि आवश्यक मानव कर्तव्यों की व्याख्या करने में भी एक मत हो जाये ताकि मानव-समाज का कल्याण हो। 'तरुण जैन' जुलाई सन् १६४२ ई० सूत्रों का पारस्परिक विरोध साधारणतया जैन शास्त्र दो भागों में विभक्त किये जा सकते हैं। भगवान महावीर प्रभु ने जो अपने श्री-मुख से फरमाये और गणधर तथा पूर्वधर आचार्यों ने भगवान के कथन को अक्षर-ब-अक्षर परम्परापूर्वक अपने शिष्यों को बताये वे तो जैन सूत्र अथवा जैन आगम के नाम से प्रसिद्ध हैं और पूर्व धरों के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003650
Book TitleJain Shastro ki Asangat Bate
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaccharaj Singhi
PublisherBuddhivadi Prakashan
Publication Year1945
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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