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१०६ जैन शास्त्रों को असंगत बातें ! विचार धारा को और मानवहित के तत्वों को समझते हैं। अपने अपने जोम में तने हुए अपनी अपनी सम्प्रदाय के भोले प्राणियों में न-कुछ न कुछ बातों पर एक दूसरी सम्प्रदाय के प्रति द्वेष फैलाते रहते हैं जिसके बुरे परिणाम स्वरूप जैनत्व का प्रति दिन हास हो रहा है। उचित तो यह है कि अब न-कुछ बातों पर टुकड़े २ न रह कर जैन कहलाने बाले, बड़े पैमाने पर सब एक हो कर जैनत्व को बचा लें।
एक 'थली-वासी' का पत्र
मान्यवर सम्पादक महोदय,
मैं यह पत्र आपकी सेवामें पहिले-पहल ही प्रेषित कर रहा हूं । सब से पहिले मैं आप को मेरा कुछ परिचय दे दूं। मैं थली प्रान्त के एक बड़े शहर का रहनेवाला और दस्से-बीसे से भी बढ़ कर पचीसा-तीसा ओसवाल हूं। शायद अन्य लोगों की तरह आप भी पूछ बैठे कि मैं किस मजहब को माननेवाला हूं ? पहिले ही कह दूं कि मैं इस वक्त जैन श्वेताम्बर पौने-तेरापंथी हूं। आप शायद इसको मजाक समझेगे, मगर मैं आप से कसमिया कहता हूं कि आपके 'तरुण' ने और खास करके आपके दो लेखकों ने मेरा पाव पंथ घिस डाला। आप समझ गये होंगे
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