________________
जैन शास्त्रों की असंगत बातें !
१०५
अङ्क बढ़ कर करोड़ों-अरबों हो जायेंगे । बिचारे १६४ अङ्कों की हस्ती ही क्या है ? फिर जितना गर्व करना हो करते रहें । पाठक वृन्द, यह है हमारे १६४ अङ्कों के गर्व का नमूना जिस में अों की गणना दिखाने में सर्वज्ञता का परिचय दिया गया है ।
जैन शास्त्रो के विषय में मेरे लेख गत मई से लगातार 'तरुण' में निकल रहे हैं जिन से शायद आपने यह अनुमान लगाया होगा कि लेखक जैनी होते हुये भी जैन शास्त्रों का बिरोधी प्रतीत होता है कारण आपकी नजर में अब तक केवल कटु समालोचना ही आई है मगर मैं आप को विश्वास दिलाता हूं कि आगे चलकर शास्त्रों की बातों के शीर्षक में आप यह भी देखेंगे कि जैन शास्त्रों में मनुष्य-जीवन के शोधन व निर्माण के जो सुन्दर सुन्दर सिद्धान्त हैं, वे भी सामने आ रहे हैं। आपको यह मालूम रहना चाहिये कि लेखक जैन धर्म और जैन शास्त्रों का विरोधी नहीं परन्तु हित- चिन्तक है । प्रत्यक्ष में असत्य प्रमाणित होने वाले प्रसंगों को जैसे के तैसे बनाये रख कर शास्त्रों की अक्षर अक्षर सत्यता पर लोगों की श्रद्धा हम कदापि नहीं रखा सकते । शास्त्रों में घुसे हुए बिकारों को निकाल फेंकने पर ही हम उनके सुन्दर सुन्दर सिद्धान्तों को स्थाई रख सकने में समर्थ हो सकते हैं वरना इस विज्ञान और तर्क के युग में लोगों को बेवकूफ बनाने की चेष्टा करना अपने आपको बेबकूफ साबित करना होगा । हमारे उपदेशक वर्ग में मुझे ऐसे बिरले नजर आ रहे हैं जो समय के मानस को, युग की
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org