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जैन शास्त्रों को असंगत बातें !
व्यतीत करते हैं, वे हमारी श्रद्धा और आदर के भाजन हैं, चाहे वे किसी भी सम्प्रदाय के हों। मैं यह मानता हूं कि साधु अपने कल्प यानी अपनी संस्था के नियम के अनुसार अपने खुद के शरीर से समाज-हित के सत्कार्यों में सहयोग न दे सके तो न दें, इसमें समाज का कुछ बनता बिगड़ता नहीं; मगर सामाजिक मनुष्य को गलत मार्ग पर ले जाने वाले सिद्धान्तों का हमें बिरोध अवश्य है। यदि इन शास्त्रों के वचन परीक्षा में अक्षर अक्षर सत्य उतरते तो इनमें बताई हुई पुण्य और धर्म उपार्जन वाली प्रत्येक परोक्ष बात के लिये भी विश्वास पर ही चलना हमारा कर्तव्य था मगर यहां तो प्रत्यक्ष बातों में भी सत्य कोसों दूर है। इसके अलावा हम एक ही शास्त्रों को मानते हुए एक सम्प्रदाय लोकोपकारक सत्कार्यों को करने में धर्म कह रहा है तो दूसरा सम्प्रदाय एकान्त पाप और अधर्म कह रहा है। हम किसकी सूझ पर भरोसा कर।" मेरे मित्र कहने लगे- ऐसी दस-बीस बात परीक्षा में असत्य उतर रही हैं तो क्या हुआ ? और हजारों बातें तो शास्त्रों में सत्य हैं।" मैने कहा “यह आप को किसने कहा कि दस बीस बात ही परीक्षा में असत्य उतर रही हैं और हजारों बातें सत्य हैं।" वे कहने लगे कि “हमारे सन्त मुनिराज ऐसा फरमा रहे हैं।” मैंने कहा-"फरमाने वाले भूल कर रहे हैं। शास्त्रों की अवस्था ठीक उनके फरमाने से विपरीत है। यदि कोई मिथ्या विवाद न करे तो मैं यह प्रमाणित कर सकता हूं कि शास्त्रों में हजारों बातें ऐसी हैं जो मेरे
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