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________________ ( ३६ ) (३) “चन्देसु निम्मलयरा, आइच्चेसु अहियं पयासयरा । सागरवरगम्भीरा, सिद्धा सिद्धिं मम दिसन्तु ।। " पारसी लोग नित्यप्रार्थना तथा नित्यपाठ में अपनी असली धार्मिक किताब ' अवस्ता ' का जो-जो भाग काम में लाते हैं, वह 'खोरदेह अवस्ता' के नाम से प्रसिद्ध है । उसका मज़मून अनेक अंशों में जैन, बौद्ध तथा वैदिक संप्रदाय में प्रचलित सन्ध्या के समान है । उदाहरण के तौर पर उसका थोड़ासा अंश हिन्दी भाषा में नीचे दिया जाता है । अवस्ता के मूल वाक्य इस लिये उद्धृत नहीं किये हैं कि उस के खास अक्षर ऐसे हैं, जो देवनागरी लिपि में नहीं हैं । विशेषजिज्ञासु मूल पुस्तक से असली पाठ देख सकते हैं । (१) "दुश्मन पर जीत हो ।" [खोरदेह अवस्ता, पृ० ७ ॥] (२) "मैं ने मन से जो बुरे विचार किये, ज़बान से जो तुच्छ भाषण किया और शरीर से जो हलका काम किया; इत्यादि प्रकार के जो-जो गुनाह किये, उन सब के लिये मैं पश्चात्ताप करता हूँ | [ खो० अ०, पृ० ७ । ] " (३) " वर्तमान और भावी सब धर्मों में सब से बड़ा, सब से अच्छा और सर्वश्रेष्ठ धर्म 'जरथोस्ती' है । मैं यह बात मान लेता हूँ कि 'जरथोस्ती' धर्म ही सब कुछ पाने का कारण है । " [ खो० अ०, पृ० ९ ।] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003649
Book TitlePanch Pratikraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1921
Total Pages526
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size17 MB
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