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( २१ ) शब्द का प्रयोग न करके सब कोई छहों 'आवश्यकों' के लिये 'प्रतिक्रमण' शब्द काम में लाते हैं । इस तरह व्यवहार में और अर्वाचीन ग्रन्थों में 'प्रतिक्रमण' शब्द एक प्रकार से 'आवश्यक शब्द का पर्याय हो गया है। प्राचीन ग्रन्थों में सामान्य 'आवश्यक' अर्थ में 'प्रतिक्रमण' शब्द का प्रयोग कहीं देखने में नहीं आया। 'प्रतिक्रमणहेतुगर्भ', 'प्रतिक्रमणविधि', 'धर्मसंग्रह' आदि अर्वाचीन ग्रन्थों में 'प्रतिक्रमण' शब्द सामान्य 'आवश्यक' के अर्थ में प्रयुक्त है और सर्व साधारण भी सामान्य 'आवश्यक' के अर्थ में प्रतिक्रमण शब्द का प्रयोग अस्खलितरूप से करते हुए देखे जाते हैं। 'प्रतिक्रमण' के अधिकारी और उस की रीति पर विचार ।
इस जगह 'प्रतिक्रमण' शब्द का मतलब सामान्य 'आवश्यक' अर्थात् छह 'आवश्यकों से है। यहाँ उस के सम्बन्ध में मुख्य दो प्रश्नों पर विचार करना है। (१) प्रतिक्रमण' के अधिकारी कौन हैं ? (२) 'प्रतिक्रमण'-विधान की जो रीति प्रचलित है, वह शास्त्रीय तथा युक्तिसंगत है या नहीं ?
प्रथम प्रश्नका उत्तर यह है कि साधु-श्रावक-दोन 'प्रतिक्रमण' के अधिकारी हैं, क्योंकि शास्त्र में साधु-श्रावक-दोनों के लिये सायंकालीन और प्रातःकालीन अवश्य कर्त्तव्य रूप से 'प्रतिक्रमण' का विधान है और अतिचार आदि प्रसंगरूप १-"समणेण सावएण य, अवस्सकायव्वयं हवइ जम्हा । अन्त अहोणिसस्स य, तम्हा आवस्सयं नाम ॥२॥"
[आवश्यक-वृत्ति, पृष्ठ १]
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