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प्रतिक्रमण सूत्र। सिक में पाँच और सांवत्सरिक में सात साधुओं को खमावे । बाद खड़े हो कर 'इच्छाकारण संदिसह भगवन् पक्खियं आलोउँ ? कहे । गुरु के 'आलोएह' कहने पर 'इच्छं, आलोएमि जो मे पक्खिओ अइयारो कओ०' पढ़े और बड़ा अतिचार बोले। पीछे 'सव्वस्स वि पक्खिय' को 'इच्छाकारेण संदिसह भगवन्। तक कहे । गुरु जब पाक्षिक, चातुर्मासिक या सांवत्सरिक में अनुक्रम से 'चउत्थेण, छट्टेण, अट्ठमेण पडिक्कमह' कहे, तब 'इच्छं, मिच्छा मि दुक्कडं' कहे । बाद दो वन्दना दे। पीछे 'इच्छाकारेण संदिसह भगवन् देवसियं आलोइय पडिक्कता पत्तेय खामणेणं, अब्भुट्टिओमि अभिंतर पक्खियं खामेउँ?' कहे । गुरु के 'खामेह' कहने के बाद 'इच्छं, खामेमि पक्खियं जं किंचि०' पाठ पढ़े और दो वन्दना दे। पीछे 'भगवन् देवसियं आलोइय पडिक्कता पक्खियं पडिक्कमावेह' कहे । गुरु जब 'सम्म पडिक्कमेह' कहे, तब 'इच्छं, करेमि भंते सामाइयं, इच्छामि ठामि काउस्सग्ग, जो मे पक्खियो, तस्स उत्तरी, अन्नत्थ' कह कर काउस्सग्ग करे और 'पक्खिय' सूत्र सुने । ____ गुरु से अलग प्रतिक्रमण किया जाता हो तो एक श्रावक खमासमण-पूर्वक 'सूत्र भगँ ?' कह कर 'इच्छं' कहे और अर्थचिन्तन-पूर्वक मधुर स्वर से तीन नमुक्कार-पूर्वक 'वंदितु' सूत्र पढ़े और बाकी के सब श्रावक ‘करेमि भंते, इच्छामि ठामि, तस्स उत्तरी, अन्नत्थ'-पूर्वक काउस्सग्ग करके उस को सुनें। 'वंदित्तु' सूत्र पूर्ण हो जाने के बाद 'नमो अरिहंताणं' कह कर
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