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________________ प्रतिक्रमण सूत्र । सिद्धायिका देवी, वारे विधन विशेष । सहु संकट चूरे, पूरे आश अशेष ॥ अहोनिश कर जोड़ी, सेवे सुर नर इन्द । जंपे गुण गण इम, श्रीजिनलाभ सुरिन्द ॥१॥ [श्रुतदेवता की स्तुति ।] सुवर्णशालिनी देयाद् , द्वादशाङ्गी जिनोद्भवा । श्रुतदेवी सदा मह्य, मशेष श्रुतसंपदम् ॥१॥ अर्थ-जिनेन्द्र की कही हुई वह श्रुतदेवता, जो सुन्दरसुन्दर वर्ण वाली है तथा बारह अमें विभक्त है, मुझे हमेशा सकल शास्त्रों को सम्पत्ति-रहस्य देती रहे ॥१॥ क्षेत्रदवता का स्तुति । ] यासां क्षेत्रगतास्सन्ति, साधवः श्रावकादयः । जिनाज्ञां साधयन्तस्ता, रक्षन्तु क्षेत्रदेवताः ॥१॥ अर्क-जिन के क्षेत्र में रह कर साधु तथा श्रावक आदि, जिन भगवान् की आज्ञा को पालते हैं, वे क्षेत्रदेवता हमारी रक्षा कर ॥१॥ [ भुवनदेवता की स्तुति । ] चतुर्वर्णाय संघाय, देवी भुवनवासिनी। निहत्य दुरितान्येषा, करोतु सुखमक्षयम् ॥१॥ अर्थ-भुवनवासिनी देवी, पापों का नाश करके चारों सधों के लिये अक्षय सुख दे ॥१॥ Jain Education International Foy Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003649
Book TitlePanch Pratikraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1921
Total Pages526
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size17 MB
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