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________________ परन्तु इस के पहले यहाँ एक बात बतला देना जरूरी है। और वह यह है कि 'आवश्यक-क्रिया' करने की जो विधि चूर्णि के ज़माने से भी बहुत प्राचीन थी और जिस का उल्लेख श्रीहरिभद्रसूरि-जैसे प्रतिष्ठित आचार्य ने अपनी आवश्यक-वृत्ति, पृ०, ७९० में किया है। वह विधि बहुत अंशों में अपरिवर्तितरूप से ज्यों की त्यों जैसी श्वेताम्बर-मूर्तिपूजक-सम्प्रदाय में चली आती है, वैसी स्थानकवासी-सम्प्रदाय मैं नहीं है । यह बात तपागच्छ, खरतरगच्छ आदि गच्छों की सामाचारी देखने से स्पष्ट मालूम हो जाती है । स्थानकवासी-सम्प्रदाय की सामाचारी में जिस प्रकार 'आवश्यक-क्रिया' में बोले जाने वाले कई प्राचीन सूत्रों की, जैसेः-पुक्खरवरदीवड्ढे, सिद्धाणं वुद्धाणं, अरिहंतचेइयाणं, आयरियउवज्झाए, अब्भुठ्ठियोऽहं, इत्यादि की काट-छाँट कर दी गई है, इसी प्रकार उस में प्राचीन विधि की भी काट-छाँट नजर आती है । इस के विपरीत तपागच्छ, खरतरगच्छ आदि की सामाचारी में 'आवश्यक' के प्राचीन सूत्र तथा प्राचीन विधि में कोई परिवर्तन किया हुआ नजर नहीं आता । अर्थात् उस में 'सामायिक-आवश्यक' से ले कर यानी अतिक्रमण की स्थापना से ले कर 'प्रत्याख्यान' पर्यन्त के छहों 'आवश्यक' के सूत्रों का तथा बीच में विधि करने का सिलसिला बहुधा वही है, जिस का उल्लेख श्रीहरिभद्रसूरि ने किया है । यद्यपि प्रतिक्रमण-स्थापन के पहले चैत्य-वन्दन करने की और छठे 'आवश्यक' के बाद सज्झाय, स्तवन, स्तोत्र आदि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003649
Book TitlePanch Pratikraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1921
Total Pages526
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size17 MB
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