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चैत्य-वन्दन - स्तवनादि
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कथनी तो जगत मजूरी, रहेणी है बंदी हजूरी रे | कथनी साकर सम मीठी, रहेणी अति लागे अनीठी | क० |४| जब रहेणी का घर पावे, कथनी तब गिनती आवे रे | अब 'चिदानन्द' इम जोई, रहेणी की सेज रहे सोई । क०१५ | [ आरति । ]
विविध रत्न- मणि जड़ित रच्चो,
थाल विशाल अनुपम लावो । आरति उतारो प्रभुर्जानी आगे,
भावना भावी शिवं सुख मागे || आ० ॥ १ ॥ सात चौद ने एक वीस भेवा,
aण त्रण वार प्रदक्षिण देवा | आ० ||२|| जिम तिम जलधारा देई जंपे,
जिम तिम दोहरा थर थर कंपे | आ० ॥३॥ बहु भव संचित पाप पणा,
चौद
सत्र पूजाथी भाव उल्लासे | आ० || ४ || भुवनमां जिनजी, कोई नहीं, आरति इम बोले । आ० ॥५॥
[ मंगल- दीपक । ]
चारो
मंगल चार, आज मारे चारो मंगल चार । देखा दरस सरस जिनजी का, शोभा सुंदर सार । आ० ॥ १ ॥ छिन् छिन् छिन् मन मोहन चरचो, घसी केसर घन सार | आ०२ |
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