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प्रतिक्रमण सूत्र ।
क्रोधे कोड़ पूरवतणुं, संजम फल जाय । क्रोध सहित तप जे करे, ते तो लेखे न थाय । क० ॥२॥ साधु घणो तपीयो हतो, धरतो मन वैराग । शिष्यना क्रोधथकी थयो, चंड कोशीयो नाग । क० ॥३॥ आग ऊठे जे घरथकी, ते पहेलुं घर वाले । जलनो जोग जो नवि मिले, तो पासेनुं पर जाले । क०॥४॥ क्रोधतणी गति एहवी, कहे केवलनाणी । हाण करे जे हितनी, जालबजो इम जाणीक०॥५॥ 'उदयरत्न' कहे क्रोधने, काढजो गले साही । काया करजो निर्मली, उपशम रस नाही ।क० ॥६॥
[ मौन एकादशी की सज्झाय । ] आज मारे एकादशी रे, नणदल मौन करी मुख रहीये पुछयानो पडुत्तर पाछो, केहने काई न कहीये।आ०।१। मारो नणदोई तुजने वहालो, मुजने तारो बीरो । बूंआड़ानो वाचक भरतां, हाथ न आवे हीरो । आ०।२। घरनो धंधो घणो कर्यो पण, एक न आव्यो आड़ो। परभव जातां पालव झाले, ते मुजने देखाड़ो। आ०।३। मागसर सुदी अगीयारस मोटी, नेर्बु जिनना निरखो । दोढ़ सो कल्याणक मोटा, पोथी जोईने हरखो। आ०।४। सुव्रत शेठ थयो शुद्ध श्रावक, मौन धरी मुख रहीयो। पावक पूर संघलो परजाल्यो, एहनो काई न दहीयो।आ०५
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