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वृद्ध-प्रसिद्ध है, वैसा दिगम्बर-सम्प्रदाय में प्रसिद्ध नहीं है । अर्थात् दिगम्बर-सम्प्रदाय में सिलसिलेवार छहों 'आवश्यक' करने की परम्परा दैवासक, रात्रिक, पाक्षिक, चातुर्मासिक और साम्वत्सरिकरूप से वैसी प्रचलित नहीं है, जैसी श्वेताम्बर-सम्प्रदाय में प्रचलित है। यानी जिस प्रकार श्वेताम्बर-सम्प्रदाय सायंकाल, प्राप्तःकाल, प्रत्येक पक्ष के अन्त में, चतुर्मास के अन्त में और वर्ष के अन्त में स्त्रियों का तथा पुरुषों का समुदाय अलग-अलग या एकत्र हो कर अथवा अन्त में अकेला व्यक्ति ही सिलसिले से छहों ' आवश्यक'. करता है, उस प्रकार 'आवश्यक' करने की रीति दिगम्बर-सम्प्रदाय में नहीं है।
श्वेताम्बर-सम्प्रदाय की भी दो प्रधान शाखाएँ हैं :- (१) मूर्तिपूजक और (२) स्थानकवासी । इन दोनों शाखाओं की साधु-श्रावक-दोनों संस्थाओं में दैवसिक, रात्रिक आदि पाँचों प्रकार के 'आवश्यक' करने का नियमित प्रचार अधिकारानुरूप बराबर चला आता है। ___मूर्तिपूजक और स्थानकवासी-दोनों शाखाओं के साधुओं को तो सुवह-शाम अनिवार्यरूप से 'आवश्यक' करना ही पड़ता है ; क्योंकि शास्त्र में ऐसी आज्ञा है कि प्रथम और चरम तीर्थकर के साधु 'आवश्यक' नियम से करें। अत एव यदि वे उस आज्ञा का पालन न करें तो साधु-पद के अधिकारी ही नहीं. समझे जा सकते।
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