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प्रस्तावना।
वैदिकसमाज में 'सन्ध्या' का, पारसी लोगों में 'खोरदेह अवस्ता' का, यहूदी तथा ईसाइयों में 'प्रार्थना' का और मुसलमानों में 'नमाज़' का जैसा महत्त्व है; जैनसमाज में वैसा ही महत्त्व 'आवश्यक' का है।
जैनसमाज की मुख्य दो शाखाएँ हैं, (१) श्वेताम्बर और (२) दिगम्बर । दिगम्बर-सम्प्रदाय में मुनि-परम्परा विच्छिन्नप्रायः है । इस लिये उस में मुनियों के 'आवश्यक-विधान' का दर्शन सिर्फ शास्त्र में ही है, व्यवहार में नहीं है । उस के श्रावकसमुदाय में भी आवश्यक' का प्रचार वैसा नहीं है, जैसा श्वेताम्बर-शाखा में है। दिगम्बरसमाज में जो प्रतिमाधारी या ब्रह्मचारी आदि होते हैं, उन में मुख्यतया सिर्फ 'सामायिक' करने का प्रचार देखा जाता है। शृङ्खलाबद्ध रीति से छहों 'आवश्यकों' का नियमित प्रचार जैसा विताम्बर-सम्प्रदाय में आबाल
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