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________________ ___ प्रतिमन । तिस कारन दीवाली होई, ध्यान धरो प्रभु वीर जिनंद ॥ज० ॥९॥ कार्तिक सुदी एकम दिन थावे, गौतम केवलज्ञान गहंद ॥ ज०॥१०॥ आतमराम परम पद पामे, 'वल्लभ' चिचमें हर्ष अमंद ॥ ज० ॥११॥ [ संमेतशिखर का स्तवन ।] यात्रा नित करीये नित करीये, गिरि समेतशिखर पग परीये बीस जिनेश्वर मोक्ष पधारे, दर्शन करी सब तरीये। या०॥१॥ काम क्रोध माया मद तृष्णा, मोह मूल परिहरीये । या०२। बीसो ट्रंके वीस प्रभुके, चरण कमल मन धरीये।या०॥३॥ आश्रव रोध संवर मन आणी, कठिन कर्म निर्जरीये । या०॥४॥ राग द्वेष प्रतिमल्लको जीती, वीतराग पद वरीये । या०।५। भद्रबाहु गुरु एम पयंपे, दर्शनशुद्धि अनुसरीये। या०६॥ मूलनायक श्रीपास जिनेसर, करी दर्शन चित्त ठरीये। या०१७ शुभ भावे प्रभु तीरथ 'वल्लभ', आतम आनन्द भरीये । या०८ [आबूजी का स्तवन । ] सेवो भवि आदिनाथ जगत्रातारे,आबू मंडन सुखदाता। सेवो. प्रभु चार निक्षेपे सोहे रे, नाम स्थापना द्रव्य भाव मोहे रे, तत्त्व सम्यग्दृष्टि बोहे ॥सेवो० ॥१॥ प्रभु-नाम नाम जिन कहिये रे, स्थापना जिन पडिमा लहिये रे, __ द्रव्य जीव जिनेश्वर गहिये ।। सेवो० ॥२॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003649
Book TitlePanch Pratikraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1921
Total Pages526
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size17 MB
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