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प्रतिक्रमण सूत्र ।
सपगच्छं सूरि महाराया रे, नमी 'विजयानन्द सूरि' पाया रे 'नया शहर 'वल्लभ' गुण गाया || संवो० ॥ ११ ॥
[ पर्युषण पर्व का स्तवन । ]
उत्तम
आये, श्रीवीर आये, श्रीवीर
जिनन्दा
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पर्युषण पूजा सतरां भेदे करी, सेवो भवि चन्दा ॥ उ ० ॥ १ ॥ शाश्वती चैतर आसु दो, चउमासे तीन सोहंदा । भादो पर्युग चउयी, अाई कदा ॥ उ० ||२|| जीवाभिगममें देखो, चउविह सूर इंदा । नंदीवर जाके महोच्छव, अड्डाई करंदा ॥ उ० ॥३॥ ठामे निज नर विद्याधर, जिन चैत्य जर्मदा | अठाई महोच्छव करके, टारे भव फंदा ॥ उ० ॥४॥ अमारी आठ दिवस तप, अट्ठम अतिनंदा 1 करी खामग सुध भावोंसे, निज कर्म जरंदा ॥ उ० ॥५॥ परिपाटी चैत्य सुहंकर, परमानन्द कंदा 1 साधर्मी वत्सल करके, पुण्य भार भरंदा || उ० || ६ || मंतरनें पंच परमिट्ठी, तीरथ में सिद्ध गिरींदा । पवमें पर्व पजूसन, सूत्रों में कल्प अमंदा | उ० ॥७॥ छठ करके बेड़ा कलपका, सुनीथे श्रीवीर जिनंदा । एकमदिन जनम महोच्छव, मंगल वरतंदा ॥ उ० ॥८॥ तेलाधर गणधर सुनीये, अतिवाद करंदा | निर्वाण महोच्छव करते, मिल सुर नर इंदा | उ० ॥९॥
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