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चैत्य-वन्दन-स्तवनादि । ३६ सुमति सुव्रत नमि जन्मीया, नेमनो मुक्ति दिन जाण रे। पास जिन एह तिथे सिद्धला,सातमा जिन चवन माण रे।वि.।१०॥ एह तिथि साधतो राजीयो, दंडवीज लह्यो मुक्ति रे। कम हणवा भणी अटमी, कडे श्रीसूत्र नियुक्तिरे। वि.।१२। अतीत अनागत कालनां, जिनतणां केई. कल्याण रे । एह तिथे क्ली धगा संयमी, पामसे पद निरवाण रे। वि.।१२। धर्म वासित पशु पंखिया, एह तिथे करे उपवास रें व्रतधारी जीव पौषध को, जेहने धर्म अभ्यास रे। वि०॥१३॥ भाखियो वीरे आठमतणा, भविक हित एह अधिकार रें। जिन मुखे ऊचरी प्राणिया, पामसे भवतगो पार रे । वि..१४॥ एहथी संपदा सपी लहे, टले वली कटनी कोड रे । सेमजोशिभ्य बुध 'प्रेम' नो, कहे'कान्ति' कर जोड़ रे।वि.।१५।
. [कलश ।].. एम त्रिजग भापन, अवर शासन, वर्धमान जिनेश्वरु।। बुध प्रेम गुरु, सुपसाय पामी, संथुण्यो अलोसरु । जिन गुग प्रपंगे, भण्यो रंगे, स्तवन ए आउमतणो। . जे भाविक भारे, सुगे गावे, 'कान्ति' सुख पावे घगो।१६
[एकादशी का स्तवन I] समासरग बेठा भगवंत, धर्म प्रकाशे श्रीअरिहंत । बार परषदा बेठी रुडी, मागसिर सुंदी अगीआरस बड़ी।। मल्लिनाथना तीन कल्याण, जन्म दीक्षा ने केवलनाण । अरजिन दीक्षा लीधी रुडी, मागसिर सुदी अगीआरस बड़ी ।२.
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