________________
३३८
प्रतिक्रमण सूत्र ।
केवलज्ञान सभुं नहीं कोई, लोकालोक प्रकाश रे | पं० |४| करने, माहरी पूरो उमेद रे ।
पारसनाथ पता
'समय तुन्दर' कहे हुं पग पासुं, ज्ञानतो पांवमो भेद रे | पं०१५॥
7
[ अष्टमी का स्तवन । ] वीर जिनवर एन उपदिशे, सांभलो चतुर सुजाण रे । मोहनी निम को पड़ो, ओरखो धर्मना ठाग रे | १ | विरतिर सुनवघरी आदरो || १ || परिहरो विषय काय रे । बापड़ा पंव परमादी, कां पड़ो कुमतिमांधाय रे । वि.|२| करी सको धर्न करगी सदा, तो करो एह उपदेश रे । सर्व काले करी नसो, तो करो पर्व सुविशेष रे ||३| जूजुआं पर खटनां कलां, फल घणां आगमे जोय रे । वचन अनुसार आराघतां, सर्वथा सिद्धि फल होय रे ।वि०|४| जीवने आयु परभव तणुं, तिथि दिने बन्ध होय प्राय रे । वह मणी एंड आराधतां प्राणिओ सद्गति जाय रे । वि० १५५ वेहरे अष्टनी फल तिहां, पूछे श्रीगौतन स्वाम रे । भविक जीव जाणवा कारणे, कहे श्रीवीर प्रभु ताम रे । विग $ अट महासिद्धि होय एहवी, संपदा आठनी वृद्धि रे । बुद्धिना आठ गुण संपजे, एहथी आठ गुण सिद्धि रे । वि० ७७ } लाभ होय आठ पाडेहारतो, आठ पवयण फल होय रे । नारा अड कर्मनो मूलथी, अटमीनुं फल जो रे । विद आदि जिन जन्म दीक्षा तणो, अजितनो जन्म कल्याण रे । चवन संभव तणो एह तिथे, अभिनन्दन निवाण रे | वि०/९४
Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org