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________________ ३२४ प्रतिक्रमण सूत्र । मल्लि जन्म अर मल्लि पास, वर चरण विलासी । रिषभ अजित सुमति नमी, मल्लि घनघाती विनाशी ॥५॥ पद्मप्रभ शिव वास पास, भव-भवना तोडी। एकादशी दिन आपणी, रिद्धि सघली जोडी ॥६॥ दश खेत्रे तिहं कालना, त्रणसें कल्याण । वरस अग्यार एकादशी, आराधो वर नाण ॥७॥ अगीआर अंग लखावीये, एकादश पाठां। पूंजणी ठवणी वीटणी, मसी कागल काठां ॥८॥ . अगीआर अव्रत छांडवा, वहो पडिमा अगीआर । 'क्षमाविजय' जिन शासने, सफल करो अवतार ॥९॥ [सिद्धचक्रजी का चैत्य-वन्दन ।] पेहेले पद अरिहंतना, गुण गाउं नित्ये । बीजे सिद्ध तणा घणा, समरो एक चित्ते ॥१॥ आचारज जीजे पदे, प्रणमो बिहुं कर जोड़ी। नमीये श्रीउवझायने, चोथे मद मोड़ी ॥२॥ पंचम पद सब साधुनु, नमतां न आणो लाज । ए परमेष्ठी पंचने, ध्याने अविचल राज ॥३॥ दंसण-शंकादिक रहित, पद छठे धारो । सर्व नाण पद सातमे, क्षण एक न विसारो ॥४॥ चारित्र चोखू चित्तथी, पद अष्टम जपीये। सकल भेद बीच दान-फल, तप नववे तपीये ॥५॥ एसिद्धचकू आराधतां, पूरे वंछित कोड़।। 'सुमतिविजय कविरायनो, 'राम' कहे कर जोड़ ॥६॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003649
Book TitlePanch Pratikraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1921
Total Pages526
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size17 MB
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