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________________ ३२२ प्रतिक्रमण सूत्र । एम अनन्त चोविसीए, हुआ बहु कल्याण । 'जिन उत्तम' पद पद्म ने, नमतां होय सुखखाण।।७।। [ पञ्चमी का चैत्य-वन्दन । ] त्रिगडे बेठा वीर जिन, भारेख भवि जन आगे । त्रिकरण से त्रिहुं लोक जन, निसुणो मन रागे ॥१॥ आराधो भली भाँतसे, पांचम अजुवाली। ज्ञानाराधन कारणे, एहिज तिथि निहाली॥२॥ ज्ञान विना पशु सारिखा, जाणो इणे संसार । ज्ञानाराधनथी लहे, शिव पद सुख श्रीकार॥३॥ ज्ञान रहित क्रिया कही, काश कुसुम उपमान । लोकालोक प्रकाशकर, ज्ञान एक परधान ॥४॥ ज्ञानी श्वासोच्छवासमें, करे कर्मनो खेह । पूर्व कोडी वरसां लगे, अज्ञाने करे तेह ॥५॥ देश आराधक क्रिया कही, सर्व आराधक ज्ञान । ज्ञान तणो महिमा घणो, अंगपांचमे भगवान ॥६॥ पंच मास लघु पंचमी, जाव जीव उत्कृष्टि । पंच वर्ष पंच मासनी, पंचमी करो शुभ दृष्टि ॥७॥ एकावन ही पंचनो ए, काउस्सग लोगस्स रो। ऊजमणुं करो भावसुं, टाले भव फेरो ॥८॥ इणीपरेपंचमी आराहीये ए, आणी भाव अपार । वरदत्त गुणमंजरी परे, 'रंगविजय लहोसार॥९॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003649
Book TitlePanch Pratikraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1921
Total Pages526
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size17 MB
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