________________
चैत्य - वन्दन - स्तवनादि ।
३२१
चार प्रकार के अतिचार में जो कोई अतिचार पक्ष - दिवस में - सूक्ष्म या बादर जानते - अनजानते लगा हो, वह सब मनवचन काया कर मिच्छा मि दुक्कडं ।
एवंकारे श्रावकधर्म सम्यक्त्वमूल बारह व्रतसंबन्धी एक सौ चौबीस अतिचारों में से जो कोई अतिचार पक्ष- दिवस में सूक्ष्म या बादर जानते - अनजानते लगा हो, वह सब मनवचन काया कर मिच्छा मि दुक्कडं ।
चैत्य-वन्दन - स्तवनादि । [ दूज का चैत्य-वन्दन । ]
दुविध धर्म जिणे उपदिश्यो, चोथा अभिनन्दन । बीजे जन्म्या ते प्रभु, भव दुःख निकंदन ॥१॥ दुविध ध्यान तुम परिहरो, आदरो दोय ध्यान । इम प्रकाश्युं सुमति जिने, ते चविया बीज दिन॥२॥ दोय बन्धन राग द्वेष, तेहने भनि तजीये । मुज परे शीतल जिन कहे, बीज दिन शिव भजीये ॥ ३ ॥ जीवाजीव पदार्थनुं, करो नाण सुजाण । बिज दिन वासुपूज्य परे, लहो केवल निश्चय नय व्यवहार दोय, एकान्त न
नाण ||४|| ग्रहीये ।
अर जिन विज दिन चत्री, एम जन आगल कहीये ॥५॥ वर्तमान चोविसीए, एम जिन कल्याण ।
बीज दिने केई पामीया, प्रभु नाण निर्वाण ॥६॥
Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
·