________________
प्रतिक्रमण सूत्र ।
तत्र ज्ञानाचार के आठ अतिचार :काले विणए बहुमाणे, उवहाणे तह अनिण्हवणे | वंजणअत्थतदुभए, अट्ठविहो नाणमायारो ॥ २ ॥ ज्ञान नियमित वक्त में पढ़ा नहीं । अकाल वक्त में पढ़ा। विनयरहित, बहुमानरहित, योगोपधानरहित पढ़ा । ज्ञान जिस से पढ़ा, उस से अतिरिक्त को गुरु माना या कहा । देववन्दन, गुरु-वन्दन करते हुए तथा प्रतिक्रमण, सज्झाय पढ़ते या गुणते अशुद्ध अक्षर कहा । लग मात्रा न्यूनाधिक कही । सूत्र असत्य कहा । अर्थ अशुद्ध किया । अथवा सूत्र और अर्थ दोनों असत्य कहे । पढ़ कर भूला । असझाई के समय में थविरावली, प्रतिक्रमण, उपदेशमाला आदि सिद्धान्त पढ़ा | अपवित्र स्थान में पढ़ा या विना साफ किये घृणित भूमि पर रखा । ज्ञान के उपकरण तखती, पोथी, ठवणी, कवली, माला, पुस्तक रखने की रील, कागज, कलम, दवात आदि के पैर लगा, थूक लगा अथवा थूक से अक्षर मिटाया, ज्ञान के उपकरण को मस्तक के नीचे रखा अथवा पास में लिये हुए. आहार-निहार किया, ज्ञान- द्रव्य भक्षण करने वाले की उपेक्षा. की, ज्ञान- द्रव्य की सार-सँभाल न की, उलटा नुकसान किया, ज्ञानवान् ऊपर द्वेष किया, ईर्षा की तथा अवज्ञा, आशांतना की, किसी को पढ़ने- गुणने में विघ्न डाला, अपने जानपने का मान किया । मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनः
।
Jain Education International For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
३०४