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प्रतिक्रमण सूत्र ।
चन्द्र समान [ ऐसा ] 'भगवान् अभिनन्दनः' अभिनन्दन प्रभु 'अमन्दम्' परिपूर्ण 'आनन्दं' सुख 'दद्यात्' दे ॥ ६ ॥
भावार्थ-जिस से स्याद्वाद सिद्धान्त उसी तरह बढ़ा, जिस तरह चन्द्र से समुद्र बढ़ता है, वह अभिनन्दन भगवान् सब को पूर्ण आनन्द दे ॥ ६ ॥
द्यसकिरीटशाणायो, त्तेजिताविनखावलिः । भगवान् सुमतिस्वामी, तनोत्वभिमतानि वः ॥७॥
अन्वयार्थ- 'द्यसत्' देवों के 'किरीट' मुकुटरूप 'शाणाग्र' शाण के अग्र भाग से 'उत्तेजिताघ्रिनखावलिः' जिस के पैरों के नखों की पङ्क्ति उत्तेजित हुई है [ ऐसा ] 'भगवान् सुमतिस्वामी' सुमतिनाथ भगवान् 'वः' तुम्हारे 'अभिमतानि' मनोरथों को 'तनोतु' पूर्ण करे ॥ ७ ॥
भावार्थ-जैसे शाणा की धार से घिसे जाने पर शस्त्र साफ हो जाता है, वैसे ही वन्दन करने वाले देवों के मुकुटों की नौक से घिसे जाने के कारण जिस के पैरों के नख बहुत स्वच्छ बने हैं । अर्थात् जिस के पैरों पर देवों ने अपना सिर आदरपूर्वक झुकाया है, वह सुमतिनाथ भगवान् तुम्हारी अभिलाषाओं को पूर्ण करे ॥ ७ ॥
पद्मप्रभप्रभोदेह,-भासः पुष्णन्तु वः श्रियम् ।
अन्तरङ्गारिमथने, कोपाटोपादिवारुणाः ॥ ८॥ . अन्वयार्थ—'अन्तङ्ग' भीतरे 'अरि' वैरियों को 'मथने' दूर करने के लिये 'कोपाटोपात्' [किये गये ] अधिक कोप
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