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________________ २३२ प्रतिक्रमण सूत्र । जगत् के प्राणियों को पवित्र करने वाले ऐसे तीर्थङ्करों की हम अच्छी तरह आसना करते हैं ॥ २ ॥ आदिमं पृथिवीनाथ, मादिमं निष्परिग्रहम् । आदिमं तीर्थनाथं च ऋषभस्वामिनं स्तुमः ॥ ३॥ अन्वयार्थ – 'आदिमं' प्रथम 'पृथिवीनाथम्' नरेश, 'आदिमं' प्रथम 'निष्परिग्रहम्' त्यागी 'च' और 'आदिम' प्रथम 'तीर्थनाथं ' तीर्थङ्कर [ ऐसे ] 'ऋषभस्वामिनं' ऋषभदेव स्वामी की 'स्तुमः' [ह] स्तुति करते हैं ॥ ३॥ भावार्थ — जो इस अवसर्पिणी काल में पहला ही नरेश, पहला ही त्यागी और पहला ही तीर्थङ्कर हुआ, उस ऋषभदेव स्वामी की हम स्तुति करते हैं ॥ ३ ॥ अर्हन्तमजितं विश्व, कमलाकर भास्करम् । अम्लान केवलादर्श, संक्रान्तजगतं स्तुवे ॥ ४ ॥ अन्वयार्थ - 'विश्व' जगत्-रूप 'कमलाकर' कमल वन के लिये 'भास्करम्' सूर्य के समान [ और ] 'अम्लानकेवलादर्शसंक्रान्तजगत' जिस के निर्मल केवलज्ञानरूप दर्पण में जगत् I ऐसा व्यक्ति जो वर्तमान समय में राजा के अधिकार को प्राप्त नहीं है, पर 'जो पहले कभी राज- सत्त को पा चुका है या आगे पाने वाली है । 'भाव- निक्षेप' उस अथ को समझना चाहिये, जिस में शब्द का मूल अर्थ अर्थात् व्युत्पान्त-सिद्ध अथ घटता हो । जैस कोई ऐसा व्याक्त जो वर्तमान समय में हा राज-सत्ता को धारण किये हुए अर्थात् राजा शब्द के मूल अर्थ - शासन-शक्ति- स युक्त हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003649
Book TitlePanch Pratikraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1921
Total Pages526
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size17 MB
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