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प्रतिक्रमण सूत्र । गिरि, नाम गुण-खानी, जग पुण्यवंत प्राणी ॥१॥ गिरि॥ सहस्र कमल सोहे, मुक्ति निलय मोहे । सिद्धाचल सिद्ध ठानी, जग० ॥२॥ गिरि ॥ शतकूट ढंक कहिये, कदंब छांह रहिये । कोड़ि निवास मानी, जग० ॥३॥ गिरि ॥ लोहित ताल ध्वज ले, ढंकादि पांच भज ले । सुर नर मुनि कहानी, जग० ॥४॥ गिरि ॥ रतन खान बूटी, रस कुंपिका अखूटी । गुरुराज मुख बखानी, जग० ॥५॥ गिरि ॥ पुण्यवंत प्राणी पावे, पूजे प्रभुको भावे । शुभ 'वीरविजय' वाणी, जग पुण्यवन्त प्राणी ॥६॥गिरि०॥
[श्रीसिद्धाचलजी की स्तुति । ] पुंडरगिरि महिमा, आगममां परसिद्ध, विमलाचल भेटी, लहीये अविचल रिद्ध । पंचम गति पहुंता, मुनिवर कोड़ाकोड़,
इण तीरथ आवी, कर्म विपातक छोड़ ॥१॥ पुंडरीक मंडन पाय प्रणमीजे, आदीश्वर जिनचंदाजी, नेमि विना त्रेवीश तीर्थकर, गिरि चढ़िया आणंदाजी । आगम मांहे पुंडरीक महिमा, भाख्यो ज्ञान दिणंदाजी, चैत्री पूनम दिन देवी चक्केसरी, 'सौभाग्य' दो सुखकंदाजी।१।
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