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________________ २२२ प्रतिक्रमण सूत्र । इच्छं' कह कर मुहपत्ति पडिलेहे | बाद 'इच्छामि०, इच्छा ० पोसहं पारेमि ? यथाशक्ति; इच्छामि०, इच्छा० पोसहो पारिओ, तहत्ति' कह कर हाथ नीचे रख कर ' सागरचंदो' इत्यादि पोसह पारने की गाथा पढ़े | बाद 'इच्छामि०, इच्छा० मुहपत्ति पडिलेहुं ? इच्छं' कह कर मुहपत्ति पडिलेह के 'इच्छामि०, इच्छा ० सामाइयं पारेमि' इत्यादि पूर्वोक्त विधि से सामायिक पारे । 44583+ चैत्य-वन्दन-स्तवनादि । [चैत्य-वन्दन । ] सकलकुशलवल्ली पुष्करावर्तमेघो, दुरिततिमिरभानुः कल्पवृक्षोपमानः । भवजलनिधिपोतः सर्वसंपत्तिहेतुः, स भवतु सततं वः श्रेयसे शान्तिनाथः ॥ १ ॥ [ श्रीसीमन्धरस्वामी का चैत्य-वन्दन । ] (१) सीमन्धर परमातमा, शिव-सुखना दाता । पुक्खलवर विजयेजयो, सर्व जीवना त्राता ॥१॥ पूर्व विदेह पुंडरीगिणी, नयरीये सोहे । श्रीश्रेयांस राजा तिहां, भविअणना मन मोहे ||२|| Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003649
Book TitlePanch Pratikraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1921
Total Pages526
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size17 MB
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