________________
२००
प्रतिक्रमण सूत्र ।
ર
सहित मुहपत्ति की पडिलेहणी करे । फिर खमासमण - पूर्वक 'इच्छाकारेण संदिसह भगवन् सामायिक संदिसाहुं' ? इच्छं' कहे । फिर 'इच्छामि खमा०, इच्छा०, सामायिक ठांउं ? इच्छं' कह के
...
ऋद्धि-गारव, रस-गारव, साता - गारव परिहरु माया- शल्य, नियाण- शल्य, मिच्छादंसण- शल्य परिहरु
...
...
क्रोध, मान, परिहरु माया, लोभ परिहरु पृथ्वीकाय, अप्काय, ते काय की रक्षा करूं वायु काय, वनस्पति-काय, त्रस-काय की यतना करूं...
....
...
...
~~ nga
कुल ५०
- पडिलेहण के वक्त पचास बोल कहे जाने का मतलब, कषाय आदि अंशुद्ध परिणाम को त्यागना और समभाव आदि शुद्ध परिणाम में रहना है । उक्त बोल पढ़ने के समय मुहपत्ति पडिलेहण का एक उद्देश्य तो मुहपत्ति को मुँह के पास ले जाने और रखने में उस पर थूक, कफ आदि गिर पड़ा हो तो मुहपत्ति फैला कर उसे सुखा देना या निकाल देना है । जिस से कि उस में संमूच्छिम जीव पैदा न हों। दूसरा उद्देश्य, असावधानी के कारण जो सूक्ष्म जन्तु मुहपत्ति पर चढ़ गये हों उन्हें यत्नपूर्वक अलग कर देना है, जिससे कि वे पञ्चाङ्ग - नमस्कार आदि के समय दब कर मर न जायें। इसी प्रकार पडिलेहृण का यह भी एक गौण उद्देश्य है कि प्राथमिक अभ्यासी ऐसी ऐसी स्थूल क्रियाओं में मन लगा कर अपने मन को दुनियाँदारी के बखेड़ों से खींच लेने का अभ्यास डाले ।
२ - " सामायिक संदिसा हुं" कह कर सामायिक व्रत लेने की इच्छा प्रकट कर के उस पर अनुमति माँगी जाती है और "सामायिके ठाऊं" कह कर सामायिक व्रत ग्रहण करने की अनुमति माँगी जाती है । प्रत्येक क्रिया में प्रवृत्ति करने से पहले बार बार आदेश लेने का मतलब सिर्फ आज्ञा-पालन गुण का अभ्यास ढालना और स्वच्छन्दता का अभ्यास छोड़ना है ।
Jain Education International For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org