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विधियाँ ।
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एणं' कह कर एक लोगस्स का कायोत्सर्ग करे । काउस्सग्ग पूरा होने पर 'नमो अरिहंताणं' कह कर उसे पार के प्रकट (खुला) 'लोगस्से' | पीछे 'इच्छामि खमा ० ' दे कर 'इच्छाकारेण संदिसह भगवन् सामायिकमुहपत्ति पडिलेहुं ? इच्छं' इस प्रकार कह कर पचास बोल
१ – हर जगह काउस्सग्ग के करने का यही मतलब है कि दोषों की आलोचना या महात्माओं के गुण-चिन्तन द्वारा धीरे धीरे समाधि का अभ्यास डाला जाय, ताकि परिणाम-शुद्धि द्वारा सभी क्रियाएँ सफल हों ।
एक 'लोगस्स' के काउस्सग्ग का कालभान पच्चीस श्वासोच्छ्वास का माना गया है । [ आवश्यक नियुक्ति, पृ० ७८७ ] । इस लिये 'चंदेसु निम्मलयरां' तक वह किया जाता हैं; क्यों कि इतने ही पाठ में मध्यम गति से पच्चीस श्वासोच्छ्वास पूरे हो जाते हैं ।
२- इस का उद्देश्य देववन्दन करना है, जो सामायिक लेने के पहले आवश्यक है । यही संक्षिप्त देववन्दन है |
३-सूत्र अर्थकरी सद्दहुं सम्यक्त्वमोहनीय, मिश्रमोहनीय, मिथ्यात्वमोहनीय परिहरु
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काम - राग, स्नेह-राग, दृष्टि-राग परिहरु
सुदेव, सुगुरु, सुधर्म आद
कुदेव, कुगुरु, कुधर्म परिहरु
ज्ञान, दर्शन, चारित्र आदरुं
ज्ञान- विराधना, दर्शन-विराधना और चारित्र-विराधना परिहरु मन-गुप्ति, वचन- गुप्ति, काय गुप्ति आदरुं
मन- दण्ड, वचन दण्ड, काय-दण्ड परिहरूं हास्य, रति, अरति परिहरु
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भय, शोक, दुगुच्छा परिहरु कृष्ण-लेश्या, नील- लेश्या, कापोत- लेश्या परिहरु
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