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प्रतिक्रमण सूत्र । ..
४५. मूलदेव -- एक राजपुत्र । यह पूर्वावस्था में तो बड़ा व्यसनी तथा नटखटी था, पर पीछे से सत्सङ्ग मिलने पर इस ने अपने चारित्र को सुधारा ।
४६. प्रभवस्वामी -- श्रीशय्यंभव सूरि के चतुर्दश-पूर्व-धारी गुरु | इन्हों ने चोरी का धन्धा छोड़ कर जम्बूस्वामी के पास दीक्षा ली थी ।
४७. विष्णुकुमार -- इस ने तपोबल से एक अपूर्व-लब्धि प्राप्त कर उस के द्वारा एक लाख योजन का शरीर बना कर नमूची राजा का अभिमान तोड़ा ।
४८. आर्द्रकुमार - राजपुत्र । इस को अभयकुमार की भेजी हुई एक जिन-प्रतिमा को देखने से जातिस्मरगा-ज्ञान हुआ। इस ने एक बार दीक्षा ले कर छोड़ दो और फिर दुबारा ली और गोशालक आदि से धर्म-चर्चा की । - सूत्रकृताङ्ग श्रुत० २ अध्य० ६ ।
४६. दृढप्रहारी - एक प्रसिद्ध चोर, जिस ने पहले तो किसी ब्राह्मण और उस की स्त्री आदि को घोर हत्या की लेकिन पीछे उस ब्राह्मणी के तड़फते हुए गर्म को देख कर वैराग्यपूर्वक संयम लिया और घोर तप कर के केवलज्ञान प्राप्त किया। -श्राव० नि० गा० १५२, पृ०
४८ ।
५०. श्रेयांस - श्रीबाहुबली का नाती । इस ने श्रीष्मादिनाथ को वार्षिक उपवास के बाद इन्तु-रस से पारणा कराया ।
- याव० नि० ० ३२९, ८० ११५ १२४०१
५१. क्रूरगडु मुनि - ये परम- क्षमा-धारी थे । यहाँ तक कि एक वार कफ के बीमार किसी साधु का थूक इन के आहार में पड़ गया पर इन्हों ने उस पर गुस्सा नहीं किया, उलटी उस की प्रशंसा और अपनी लघुता दिखलाई और अन्त में केवलज्ञान प्राप्त किया ।
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