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भरहेसर की सज्झाय । ३७. आर्य महागिरि-श्रीस्थूलभद्र के शिष्य ।ये जिनकल्पीये नहीं, तो भी जिनकल्प का प्राचार पालन करते थे।
-प्राव०नि० गा० १२८३, पृ०६६। ३८. प्रार्यरतित-तोसिलपुत्र सूरि के शिष्य । इन्हों ने श्रीवजूस्वामी से नौ पूर्व पूर्ण पढ़े और आगमों को चार अनुयोगों में विभाजित किया। -आव०नि० गा०७७५,पृ० २६ । ३६. प्रार्यसुहस्ति-श्रीस्थूलभद्र के शिष्य ।
-प्राव नि० गा० १२८३ । ४०. उदायन--वीतभर नगर का नरेश। इसने अपने भानजे केशी को राज्य दे कर दीक्षा ली और केशी के मन्त्रियों द्वारा अनेक बार विष-मिश्रित दही दिये जाने पर भी देव-लहायता से बच कर अन्त में उसी विष-मिश्रित दही से प्राण त्यागे।
--श्राव० नि० गा० १२८५ ४१. मनकपुत्र-श्रीशय्यभव सूरि का पुत्र तथा शिष्य । इस के लिये श्रीशय्यंभव सरि ने दशवकालिक सूत्र का उद्धार किया।
-दशवै०नि० गा० १४ । ४२. कालिकाचार्य-ये तीन हुए । एक ने अपने हठी भानजे दत्त को सच २ बात कह कर उस की भूल दिखाई । दूसरे ने भादौं शुक्ला चतुर्थी के दिन सांवत्सरिक प्रतिक्रमण करने की प्रथा शुरू की। तीसरे ने गर्दभिल्ल राजा को सख्त सजा दे कर उस के हाथ से परम-साध्वी अपनी बहिन को छुड़ाया और प्रायश्चित्त ग्रहण कर संयम का पाराधन किया।
४३-४४. शाम्ब, प्रद्युम्न--इन में से पहिला श्रीकृष्ण की स्त्री जम्बूवती का धर्मप्रिय पुत्र और दूसरा रुक्मिणी का परम सुन्दर पुत्र। -अन्तकृत् वग ४, अध्य० ६-७, पृ० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org