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________________ १५६ प्रतिक्रमण सूत्र । ३. अभयकुमार-श्रेणिक का पुत्र तथा मन्त्री । इस ने पिता के अनेक कार्यों में भारी सहायता पहुँचाई । यह अपनी बुद्धि के लिये प्रसिद्ध है। ४. ढण्ढणकुमार-कृष्ण वासुदेव की ढगढणारानी का पुत्र। . इस ने अपने प्रभाव से प्राहार लेने का अभिग्रह (नियम) लिया था परन्तु किसी समय पिता की महिमा से श्राहार पाया मालूम करके उसे परठवते समय केवलज्ञान प्राप्त किया। ५. श्रीयक-स्थूलभद्र का छोटा भाई और नन्द का मन्त्री । यह उपवास में काल-धर्म कर के स्वर्ग में गया। आव०नि० गा० १२८४, तथा पृ० ६६३-६४। ६. अनिकापुत्र-इस ने पुष्पचूला साध्वी को केवल ज्ञान पा कर भी वैयावृत्य करते जान कर 'पिच्छा मि दुक्कडं' दिया। तथ. किसी समय गङ्गा नदी में नौका में से लोगों के द्वारागिराये जाने पर भी क्षमा-भाव रख कर केवलज्ञान प्राप्त किया। इसी निमित्त से 'प्रयाग-तीर्थ' की उत्पत्ति हुई कही जाती है। प्रा०नि० गा० १९८३ तथा पृ०६६८.६५ । ____७. अतिमुक्त मुनि- इस ने पाठ वर्ष की छोटी उम्र में दीक्षा ली और बाल-स्वभाव के कारण तालाब में पात्री तैराई। फिर 'इरियावहियं' करके केवलज्ञान प्राप्त किया। अन्तकृत् वर्ग ६-अध्य०१५।। ८. नागदत्त-दो हुए । इन में से एक अदत्तादानव्रत में अतिदृढ तथा काउसग्ग-बल में प्रसिद्ध था और इसी से इस ने राजा के द्वारा शूली पर चढ़ाये जाने पर शूली को सिंहासन के रूप में बदल दिया। दूसरा नागदत्त--श्रेष्ठि-पुत्र हो कर भी सर्प-कीडा में कुशल था। इस को पूर्व जन्म के मित्र एक देव ने प्रतिबोधा, तब इस ने जातिस्मरणशान पा कर संयम धारण किया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003649
Book TitlePanch Pratikraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1921
Total Pages526
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size17 MB
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