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________________ भरसर की सज्झाय । १५१ भावार्थ - - भगवान् पार्श्वनाथ सब कामनाओं को पूर्ण करें । उनके शरीर का कान्ति-मण्डल चिकना तथा सर्प के मणियों की किरणों से व्याप्त होने के कारण ऐसा मालूम हो रहा है कि मानों बिजली की चमक से शोभित नया मेघ हो अर्थात् भगवान् का शरीर नवीन मेघ की तरह नील वर्ण और चिकना "है तथा शरीर पर फैली हुई सर्प- मणि की किरणें बिजली की किरणों के समान चमक रही हैं ॥२॥ :0: -- ४६ ----भरहेसर की सज्झाय । भरसर बाहुबली, अभयकुमारो अ ढंढणकुमारो । सिरिओ अगिआउत्तो, अमुतो नागदत्तो अ ॥१॥ मेअज्ज थूलभद्दो, वयररिसी नंदिसेण सिंहगिरी । कयवनो अ सुकोसल, पुंडरिओ केसि करकंडू ||२॥ हल्ल विल्ल सुदंसण, साल महासाल सालिभद्दो अ । भदो दसणभद्दो, पसण्णचंदो अ जसभदो ॥३॥ + भरतेश्वरो बाहुबली, अभयकुमारश्च ढण्ढणकुमारः । श्रीयकोऽर्णिकापुत्रोऽतिमुक्तो नागदत्तश्च ॥१॥ तार्यः स्थूलभद्रो, वज्रर्षिर्नन्दिषेणः सिंहगिरिः । कृतपुण्यश्च सुकोशलः, पुण्डरीकः केशी करकण्डूः ॥२॥ हल्लो विल्लः सुदर्शनः, शालो महाशालः शालिभद्रश्च । भद्रो दशार्णभद्रः, प्रसन्नचन्द्रश्च यशोभद्रः ॥ ३ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003649
Book TitlePanch Pratikraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1921
Total Pages526
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size17 MB
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