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प्रतिक्रमण सूत्र । 'मयणबाण' काम-बाणों को 'मुसुमूरणू तोड़ देने वाले, 'सरसपिअंगुवण्णु' नवीन प्रियङ्गु वृक्ष के समान वर्ण वाले, ‘गयगामिउ' हाथी की सी चाल वाले और 'भुवणत्तयसामि' तीनों भुवन के स्वामी 'पासु' श्रीपार्श्वनाथ 'जयउ' जयवान् हो ॥१॥
भावार्थ--तीन भुवन के स्वामी श्रीपार्श्वनाथ स्वामी की .. जय हो । वे कषायरूप वैरिओं का नाश करने वाले हैं; काम के
दुर्जय बाणों को खण्डित करने वाले हैं- जितेन्द्रिय हैं; नये प्रि.. यगु वृक्ष के समान नील वर्ण वाले हैं और हाथी-की-सी गम्भीर गति वाले हैं ॥१॥ । जसु तणुकंति कडप्प सिणिद्धउ,
सोहइ फणिमणिकिरणालिद्धउ । नं नवजलहरतडिल्लयलंछिउ,
सो जिणु पासु पयच्छउ वंछिउ ॥२॥ अन्वयार्थ-- 'जमु जिस के 'तणुकतिकडप्प' शरीर का कान्ति-मण्डल 'सिणिद्धउ' स्निग्ध और 'फणिमणिकिरणालिद्धउ' साँप की मणियों की किरणों से व्याप्त है, इस लिये ऐसा] "सोहइ' शोभमान हो रहा है कि 'नं मानो 'तडिल्लयलंछिउ' बिजली की चमक-सहित 'नवजलहर' नया मेघ हो; 'सो' वह 'पासु' श्रीपार्श्वनाथ 'जिणु' जिनेश्वर 'वंछिउ' वाञ्छित ‘पयच्छउ' देवे ॥२॥ +यस्य तनुकान्तिकलापः स्निग्धः, शोभते फणिमणिकिरणाश्लिष्टः । ननु नवजलधरस्ताडल्लतालाञ्छितः, स जिनः पार्श्वः प्रयच्छतु वाञ्छितम् ॥२॥
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