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________________ ९४ प्रतिक्रमण सूत्र । मिलावट कर के देना, (३) चुंगी आदि महसूल विना दिये किसी चीज को छिपा कर लाना ले जाना या मनाही किये जाने पर भी दूसरे देश में जाकर राज्यविरुद्ध हलचल करना, (४) तराजू, बाँट आदि सही सही न रख कर उन से कम देना ज्यादा लेना, (५) छोटे बड़े नाप रखकर न्यूनाधिक लेना देना ॥१३॥१४॥ [ चौथे अणुबूत के अतिचारों की आलोचना ] * चउत्थे अणुव्वयम्मि, निचं परदारगमणविरईओ । आयरिअमप्पसत्थे, इत्थ पमायप्प संगेणं ॥ १५॥ अपरिगहिआ इत्तर, अगंगवीवाहतिव्वअणुरागे । चउत्थवयस्सइआरे, पाडेक्कमे देसिअं सर्व्व ॥ १६ ॥ # अन्वयार्थ-' परदारगमणविरईओ' परस्त्रीगमन विरतिरूप 'इत्थ' इस 'चउत्थे' चौथे 'अणुव्त्रयम्भि' अणुव्रत के विषय में 'पमायप्पसंगेणं' प्रमादवश होकर 'निच्च' नित्य 'अप्पसत्थे ' अप्रशस्त 'आय रिअं’आचरण किया । जैसेः- 'अपरिग्गहिआ' नहीं व्याही हुई स्त्री के साथ सम्बन्ध, ‘इत्तर' किसी की थोड़े वख्त तक रक्खी हुई स्त्री के साथ चतुर्थेऽणुवते नित्यं परदारगमनविरतितः । , आचरित प्रशस्ते, - ऽत्रप्रमादप्रसङ्गेन ॥१५॥ अपरिगृहीतेत्वरा, नंगविवाहतीवानुरागे । चतुर्थव्रतस्यातिचारान् प्रतिक्रामामि देवसिकं सर्वम् ॥१६॥ , — सदारसंतोसस्स समणोवास एणं इमे पंच०, तंजहा - अपरिग्गहिआगमणे इत्तरियपरिग्गहियागमणे अगंगकडा परवीवाहकरणे कामभोगतिव्वाभिलासे । [ आवश्यक सूत्र, पृष्ठ ८२३] १ - यह सूत्रार्थ पुरुष को लक्ष्य में रख कर है । स्त्रियों के लिये इससे उलटा समझना चाहिये । जैसे :--- परपुरुषगमन विरतिरूप आदि । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003649
Book TitlePanch Pratikraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1921
Total Pages526
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size17 MB
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