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देवसिअं आलोउं ।
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न्धिनी, सब प्रकार के मिथ्या व्यवहारों सें होने वाली और सब प्रकार के धर्म के अतिक्रमण से होने वाली आशातना के द्वारा मैंने अतिचार सेवन किया उसका भी प्रतिक्रमण करता हूँ अर्थात् फिर से ऐसा न करने का निश्चय करता हूँ, निन्दा करता हूँ, आप गुरु के समीप उसकी और ऐसे पाप - व्यापार से आत्मा को हटा लेता हूँ ॥२९॥
उस दूषण की गर्हा करता
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[ दुबारा पढ़ते समय ' आवस्सिए' पद नहीं कहना । रात्रिक प्रतिक्रमण में 'राइवइक्कता', चातुर्मासिक प्रतिक्रमण में 'चउमासी वइक्कंता', पाक्षिक प्रतिक्रमण में 'पक्खो वइक्कंतो', सांवत्सरिक प्रतिक्रमण में 'संवच्छरो वइक्कतो, ऐसा पाठ पढ़ना । ]
३०--देवसिअं आलोउं सूत्र |
* इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! देवसिअं आलोउं । इच्छं । आलोएमि जो मे इत्यादि ।
भावार्थ - हे भगवन् ! दिवस सम्बन्धी आलोचना करने के लिये आप मुझको इच्छा--पूर्वक आज्ञा दीजिए ; ( आज्ञा मिलने पर) 'इच्छं'– उसको मैं स्वीकार करता हूँ | बाद 'जो मे' इत्यादि पाठ का अर्थ पूर्ववत् जानना ।
इच्छाकारेण संदिशथ भगवन् ! दैवसिकं आलोचयितुं । इच्छामि । आलोचयामि यो मया इत्यादि ।
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