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भगवान् आदि को वन्दन ।
२५- भगवान् आदि को वन्दन ।
* भगवानहं, आचार्यहं, उपाध्यायहं सर्वसाधुहं । अर्थ --- भगवान् को, आचार्य को, उपाध्याय को, और अन्य सब साधुओं कों नमस्कार हो ।
२६ - देवसिअ पडिक्कमणे ठाउं ।
इच्छाकारेण संदिसह भगवं देवसिअ पडिक्कमणे ठाउं ? इच्छं ।
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सव्वस्सवि देवसिअ दुचिंति दुब्भासिअ दुच्चिट्ठिअ मिच्छामि दुक्कडं ।
अन्वयार्थ – 'देवसिअ ' दिवस - सम्बन्धी 'सव्वस्सवि' सभी 'दुखितिअ ' बुरे चिंतन 'दुब्भासिअ ' बुरे भाषण और 'दुच्चिट्ठिअ' बुरी चेष्टा से ‘मि' मुझे [जो] 'दुक्कर्ड' पाप [लगा वह ] 'मिच्छा' मिथ्या हो ।
भावार्थ - दिवस में मैंने बुरे विचार से, बुरे भाषण से और बुरे कामों से जो पाप बांधा वह निष्फल हो ।
भगवद्भयः, आचार्येभ्यः, उपाध्यायेभ्यः, सर्वसाधुभ्यः ।
१' भगवानहं' आदि चारों पदों में जो 'हं' शब्द है वह अपभ्रंश भाषा के नियमानुसार छट्टी विभक्ति का बहुवचन है और चौथी विमति के अर्थ में आया हैं ।
↑ सर्वस्याऽऽपि दैवसिकस्य दुश्चिन्तितस्य दुर्भाषितस्य दुश्चेष्टितस्य मिया मम दुष्कृतम् ।
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