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प्रतिक्रमण सूत्र । स्वरूप दिखाईदेने वाली, और द्वादशाङ्गी वाणी की अधिष्ठात्री हे श्रुत-देवि ! तू मुझे संसार से पार होने का वरदान दे॥४॥
२२-पुक्खर-वर-दीवड्ढे सूत्र । * पुक्खरवरदीवड्ढे, धायइसंडे अ जंबुदीवे अ। - भरहेरवयविदेहे धम्माइगरे नमसामि ॥१॥
अन्वयार्थ—'जंबुदीवे' जम्बूद्वीप के 'धायइसंडे' धातकीखण्ड के 'अ' तथा 'पुक्खरवरदीवड्ढे' अर्ध पुष्करवर-द्वीप के 'भरहेरवंयविदेहे' भरत, ऐरवत और महाविदेह क्षेत्र में 'धम्माइगरे' धर्म की आदि करने वालों को [ मैं ] 'नमंसामि नमस्कार करता हूँ ॥१॥
भावार्थ-जम्बूद्वीप, धातकी-खण्ड और अर्ध पुष्करवरद्वीप के भरत, ऐरवत, महाविदेह क्षेत्र में धर्म की प्रवृत्ति करने वाले तीर्थङ्करों को मैं नमस्कार करता हूँ। ॥१॥
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१-१ आचाराङ्ग, २ सूत्रकृताङ्ग, ३स्थानाङ्ग, ४ समवायाङ्ग,५ व्याख्याप्रज्ञाप्ति-भगवती, ६ ज्ञाता-धर्मकथा, ७ उपासकदशाङ्ग, ८ अन्तकृत्दशाङ्ग, ९ अनुत्तरोपपातिकदशाङ्ग, १० प्रश्नव्याकरण, ११ विपाक और १२ दृष्टिवाद, ये बारह अङ्ग कहलाते हैं । इन अङ्गों की रचना तीर्थङ्कर भगवान् के मुख्य शिष्य जो गणधर कहलाते हैं वे करते हैं। इन अगों में गूंथी गई भगवान् की वाणी को 'द्वादशाङ्गी वाणी' कहते हैं। * पुष्करवरद्वीपार्धे धातकीषण्डे च जम्बूद्वीपे च ।
भरतैरवतविदेहे धर्मादिकरानमंस्यामि ॥१॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org