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________________ इरियावहियं । ' ओसा ' ओस ' उत्तिंग' चींटी के बिल ' पणग पाँच रंग की काई ' दग' पानी 'मट्टी मिट्टी और मक्कडासंताणा' मकड़ी के जालों को ' संकमणे ' खंड व कुचल कर ! ' C • जे' जिस किसी प्रकार के 'एगिंदिया एक इन्द्रियवाले इंदिया " दो इन्द्रियवाले ' तेइंदिया ' तीन इन्द्रियवाले ' चउरिंडिया ' चार इन्द्रियवाले [ या ] पंचिंदिया' पाँच इन्द्रियवाले' जीवा' जीवों को ' विराहिया ' पीड़ित किया हो, ' अभिया' चोट पहुँचाई हो, ' बत्तिया ' धूल आदि से ढाँका हो, ' लेसिया' आपस में अथवा जमीन पर मसला हो, ' संघाइया इकट्ठा किया हो, 'परियाविया ' परिताप - कष्ट पहुँचाया थकाया हो, ' उद्दविया ' हैरान किया हो, जगह से ' ठाणं ' दूसरी जगह संकामिया ' रक्खा हो, संघट्टिया ' छुआ हो. हो, 'किलामिया ' • ठाणाओ ' एक 6 6 [ विशेष क्या, किसी तरह से उनको ] जीवियाओ ' जीवन से' ववरोविया' छुड़ाया हो ' तस्स ' उसका उसका ' दुक्कडं पाप 'मि' मेरे लिये मिच्छा' निष्फल हो । " • भावार्थ - - रास्ते पर चलने-फिरने आदि से जो विराधना होती है उससे या उससे लगने वाले अतिचार से मैं निवृत्त 6 ? " 6 वीन्द्रियाः, त्रीन्द्रियाः, चतुरिन्द्रियाः, पञ्चेन्द्रियाः, अभिहताः, वर्तिताः, श्लेषिताः, संघातिताः, संघडिताः, परितापिताः, क्लमिताः, अवद्राविताः, स्थानात् स्थानं संक्रमिताः, जीवितात् व्यपरोपितास्तस्य मिथ्या मम दुष्कृतम् । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003649
Book TitlePanch Pratikraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1921
Total Pages526
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size17 MB
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