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________________ प्रतिक्रमण सूत्र । अन्वयार्थ - भगवन् ' हे गुरु महाराज ! ' इच्छाकारेण ' इच्छा से - इच्छापूर्वक 'संदिसह ' आज्ञा दीजिये [ जिससे मैं ] ' इरियावहियं ' ईर्यापथिकी क्रिया का पडिक्कमामि' प्रतिक्रमण करूँ । 'इच्छं' आज्ञा प्रमाण है । ६ 1. इच्छामि पडिकमिउं इरियावहियाए विराहणाए । गमणागमणे, पाणकमणे, बीयकमणे, हरियकमणे, ओसा-उत्तिंग-पणग- दग-मट्टी-मक्कडासंताणा-संकमणे जे मे जीवा विराहिया - एगिंदिया, बेइंदिया, तेहूंदिया, चउरिंदिया, पंचिंदिया, अभिहया, बत्तिया, लेसिया, संघाइया, संघट्टिया, परियाविया, किलामिया, उद्दविया, ठाणाओ ठाणे संकामिया, जीवियाओ ववरोविया तस्स मिच्छामि दुकडे || 6 ' अन्वयार्थ' इरियावहियाए' ईर्यापथ सम्बन्धिनी - रास्ते पर चलने आदि से होने वाली 'विराहणाए विराधना से ' पडिक्कमिडं निवृत्त होना- हटना व बचना ' इच्छामि चाहता हूँ [ तथा ] 'मे' मैंने ' गमणागमणे ' जाने आने में पाणकमणे ' किसी प्राणी को दबा कर ' बीयकमणे ' बीज दबाकर ' हरियक्कमणे ' वनस्पति को दबाकर [ या ] को " + इच्छामि प्रतिक्रमितुं ईर्यापथिकायां विराधनायां । गमनागमने, प्राणाक्रमणे, बीजाक्रमणे, हरिताक्रमणे, अवश्यायोत्तिङ्गपनकोदकमृत्तिकामर्कट तानसंक्रमणे ये मया जीवा विराधिताः - एकेन्द्रियः Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003649
Book TitlePanch Pratikraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1921
Total Pages526
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size17 MB
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